Lockdown ne kiya bimar paryavaran ko sawsat
लॉक डाउन का पर्यावरण पर प्रभाव
प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित इस दिवस का उद्देश्य पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करना एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए एकजुट होकर कार्य करना है ।आज जबकि पूरा विश्व को रोना महामारी से जूझ रहा है विवश होकर हमारी सरकार को लाकडाउन का निर्णय लेना पड़ा है किंतु लॉक डाउन ने हमारा पर्यावरण जो
1.वायु प्रदूषण का ग्राफ नीचे -देश की राजधानी दिल्ली जहां वायु प्रदूषण के कारण शहर की आबोहवा इतनी जहरीली हो जाती है कि बच्चे से लगाकर बूढ़े तक हर व्यक्ति हमेशा मास्क लगाकर रहते हैं ताकि जहरीली हवा उनके फेफड़ों को न छुएं ।वहांँ लॉक डाउन के कारण हवा में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का कहना है कि सभी महानगरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स 100 से नीचे चला गया है अर्थात हवा शुद्ध हो गई है ।हवा में ऑक्सीजन का प्रतिशत बढ़ गया है ।
हो गया है । नदियों कोस्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च करके अनेक अभियान चला रही है जैसे नमामि गंगे परियोजना आदि। जल प्रबंधन बोर्ड के विशेषज्ञों का कहना है कि 25 वर्षों में पहली बार नर्मदा यमुना गंगा का पानी साफ स्वच्छ और निर्मल हुआ है सामान्यतः इन नदियों की टर्बी डिटी 12:00 से 13:00 एनटीयू दी गई है किंतु लॉक डाउन मे टबिर्डिटी
10 से भी कम हो गई है ।पानी मिनरल वाटर से भी शुद्ध हो गया है नदियाँ सेल्फ सैनिटाइजेशन कर रही है । लॉक डाउन के कारण वाहनों कारखानों एवं घरों का अवशिष्ट पदार्थ नदियों में नहीं बहाया जा रहा है इससे इससे नदियों का पानी साफ स्वच्छ हो गया है उसमें ऑक्सीजन का प्रतिशत बढ़ गया है।
3.पक्षियों के कलरव ने लया शोरगुल का स्थान -लाकडाउन
के कारण वाहनों कारखानों लाउडस्पीकर का शोरगुल थम गया है। धुआं छोड़ते वाहन उनकी कर्कश आवाज चारों ओर सुनाई देती थी वही उस शोरगुल का स्थान पक्षियों की चहचहाहट ने ले लिया है ।जहांँ शोरगुल मानसिक तनाव को और अधिक बढ़ा देता है वहांँ पक्षियों के कलरव और उनकी मधुर आवाज से तनाव छूमंतर हो जाता है। मनुष्य 85 डेसीबल तक की आवाज सुन सकता है उसके बाद की ध्वनि शोर में बदल जाती है और शोर चिड़चिड़ा हट में, इसीलिए शहरों में लोगों में मानसिक तनाव चिड़चिड़ा हाट अधिक देखने को मिलती है। 4. प्रकृति ने ओढ़ी हरियाली की चादर -प्रकृति ने हरियाली की चादर ओढ़ ली गई उस पर गुलमोहर के लाल पुष्प उसकी हरीतिमा को लाल रंग से और अधिक सुंदर बना रहे हैं। प्रकृति नई दुल्हन की तरह नजर आ रही है ।हरे भरे पेड़ मस्त होकर लहलहा रहे हैं आम के पेड़ों पर आम के गुच्छे नजर आ रहे हैं ।वृक्ष कटाई के खौफ से बेखौफ होकर लहलहा रहे हैं।
5.राहत का झरना--आमतौर पर अप्रैल में झरनों का पानी लगभग खत्म हो जाता है किंतु इस बार ऐसा दृश्य नहीं दिखाई दे रहा है चाहे पाताल पानी का झरना हो, या पचमढ़ी का झरना या बस्तर का चित्रकूट झरना लगभग सभी झरने
गर्मी में राहत के झरने बनकर झर झर बहा रहे हैं।
सच है कि लॉक डाउन की वजह से हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है ।उसमें मंदी आ गई है किंतु पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए तो लॉक डाउन पर्यावरण की दृष्टि से क्रांतिकारी साबित हुआ है । पर्यावरण विभाग के आंकड़े बताते हैं कि लॉक डाउन की वजह से पर्यावरण के स्तर में काफी सुधार आया है ।। पर्यावरण एवं विकास के मध्य लक्ष्मण रेखा खींची जाए,- प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में यह बात कही है कि हर मुश्किल हालात हमें कुछ ना कुछ सिखा कर जाते हैं ।कोरोनावायरस ने भी हमें यही सबक सिखाया है कि प्रकृति की छेड़छाड़ हमारी लिए घातक सिद्ध होगी। लॉक डाउन में प्रधानमंत्री ने कोरोनावायरस से बचने के लिए घरों से ना निकलने की सलाह दी है ।लक्ष्मण रेखा की बात कही है किंतु अब हमें एक और लक्ष्मण रेखा की आवश्यकता है वह है विकास की लक्ष्मण रेखा ।इसका आशय है कि हम विकास के नाम पर प्रकृति का अंधाधुंध दोहन नहीं करेंगे ,अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर प्रकृति का विनाश नहीं करेंगे। ऐसा विकास किस काम का जिससे हमारा जीवन और अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाए। हम मनुष्य हैं रोबोट नहीं ।हमें जीने के लिए प्रकृति और पर्यावरण चाहिए ।उनके बिना जीवन संभव नहीं है इसलिए अब समय आ गया है कि हम भौतिकता बाद की चाह में, विकास के नाम पर या महाशक्ति बनने की दौड़ के कारण प्रकृति का अनुचित दोहन नहीं करें। विकास औ
वरना प्रकृति कोरोनावायरस जैसी किसी भी प्राकृतिक आपदा के रूप में हम पर वार करती रहेगी । अब भी न जागे तो , भयंकर होंगे दुष्परिणाम -आज प्रकृति पर्यावरण संकट के प्रति आगाह कर रही है हमें चेतावनी दे रही है किंतु यदि हम अभी ना जागे तो परिणाम भयावह होंगे ।आज जिस कोरोना महामारी से पूरा विश्व जूझ रहा है सच कहा जाए तो यह मानवीय भूल का ही परिणाम है। मनुष्य ने विज्ञान को प्रकृति से भी ऊपर मान लिया है और वो विज्ञान के सहारे प्रकृति को अपनी मुट्ठी में करना चाहता है किंतु प्रकृति को अपने वश में करना, उसका मनचाहा उपयोग करना संभव नहीं है ।प्रकृति स्वतंत्र है और हम प्रकृति, पर्यावरण के अधीन है इसलिए उसका दुरुपयोग करना, उस पर आधिपत्य जमाना मनुष्य की भूल है। महाशक्ति बनने की चाह, विकास की दौड़ में अव्वल रहने की इच्छा और भौतिकवाद की जिजीविषा ने मनुष्य के विवेक को खत्म कर दिया है ।इंटरनेट क्रांति के इस युग में किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि कभी कोरोना जैसी महामारी आएगी। ऐसा दौर भी आएगा की धरती और आकाश को एक करने वाला मनुष्य अपनी जान बचाने के लिए अपने ही घर में कैद होकर रह जाएगा ।प्राणियों और पक्षियों को पिंजरे में कैद करने वाला मनुष्य पिंजरे में बंद हो जाएगा ।जब एक वायरस मानव जगत को हिला सकता है सोचो कि पूरी प्रकृति अपने रौद्र रूप में आ जाए तुम मनुष्य की क्या स्थिति होगी। संपूर्ण प्राणी जगत का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। इतनी बड़ी प्राकृतिक आपदा के बाद भी यदि हम प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करते रहे आने वाले समय में परिणाम इससे भी अधिक भयावह होंगे। किसी ने सही कहा है पर्यावरण का करो संरक्षण नहीं तो होगा मानवता का भक्षण।
kirti dubey
मेम
ReplyDeleteशब्दों की अटखेलियाँ अच्छी लगीं
बहुत सही आकलन किया आपने ।
ReplyDeleteThanks mam
Deleteलॉकडाउन से प्रकृति में आए ख़ूबसूरत परिवर्तन ने हमें बता दिया कि हम प्रकृति से दूर कितने ग़लत कृत्रिम तरीक़े से जी रहे थे। बहुत अच्छा लिखा आपने।
ReplyDeleteApne andar ki Pratibha Ko Yun hi nikharta raho aur badhate raho we are proud you
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