father's day special


                   

                    बदलते   दौर में  बदलती  भूमिका  के  साथ पिता-

                                               मांँ के प्यार में जहांँ ममता दया और प्रेम की अधिकता होती है वही पिता के प्यार में अनुशासन और        सख्ती  होती है इसीलिए पिता को नारियल की संज्ञा दी गई है। नारियल जिस प्रकार ऊपर से रुखा सूखा दिखाई देता है किंतु अंदर से वह उतना ही कोमल सरस  होता है उसी प्रकार पिता भी ऊपर से सख्त और अनुशासित दिखाई देते हैं किंतु अंदर से अपने बच्चों के प्रति कोमल और वात्सल्य   रस से  पूरित   रहते है  कठोरता  और      रूखापन  के पीछे उनका एकमात्र उद्देश्य बच्चों को संस्कारित और अनुशासित बनाना होता है। पिता ना कि केवल  बच्चों को सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं वरन चुनौतियों और मुश्किलों का सामना करने के लिए ताकत और हौसला भी प्रदान करते हैं। पिता की मौजूदगी सूरज की तरह होती है जो गर्म जरूर होता है यदि ना हो तो जीवन में अंधेरा छा जाता है।

1.बीते दौर  में पिता की भूमिका - कुछ समय पहले पिता और बच्चों के मध्य काफी दूरियां हुआ करती थी बच्चे अपने पिता से कोई भी बात खुलकर बोल नहीं पाते थे। वे किसी माध्यम के द्वारा अपनी बात उन तक  पहुंँचाते थे उनके अंदर अपने पिता के प्रति अत्यधिक डर और संकोच हुआ करता था पिता भी बच्चों से दूरी बनाकर रखते थे ।उनके साथ कम समय व्यतीत कर पाते थे बच्चों के साथ खेलना ,टीवी देखना, घूमना फिरना यह सब लगभग ना के बराबर था किंतु इसका यह मतलब नहीं कि पिता अपने बच्चों के प्रति गैर जिम्मेदार और लापरवाह होते थे ।पिता अपने बच्चों के प्रति उतने ही जिम्मेदार ,कर्तव्यनिष्ठ थे जितना आज है फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय पिता और बच्चों के मध्य दूरियाँ अधिक हुआ करती थी। 

                                                                                          2. बदलते  दौर  में पिता की भूमिका- समय के साथ परिस्थितियांँ बदली है बदलते दौर में पिता की भूमिका भी बदल गई है पिता और बच्चों के मध्य दूरियांँ लगभग समाप्त सी हो गई है। अब बच्चे खुलकर किसी भी विषय पर अपने पिता से चर्चा कर लेते हैं चाहे वह  करियर ,शादी ,नौकरी या कोई घरेलू मुद्दा हो ।हर विषय पर भी बेबाक होकर चर्चा करते हैं  संकोच अपनी राय और निर्णय सुनाते हैं। पिता भी अपना अधिकतम समय बच्चों के साथ व्यतीत करने का प्रयास करते हैं उनके साथ खेलना उन्हें पढ़ाना उन्हें घूमाना फिराना यह सब उनके जीवन का अहम हिस्सा बन गया है ।सकारात्मक परिवर्तन है पिता और बच्चों के मध्य नजदीकियां बढ़ी है। दोनों एक दूसरे की भावनाओं विचारों अवगत होने  लगे है ।इससे दोनों के मध्य रिश्ता और भी गहरा हो गया है पिता और बच्चों के मध्य मित्रवत व्यवहार कायम हो गया है   डर  संकोच     का वातावरण समाप्त होने लगा है                                             3.रिश्तो के मध्य संतुलन बनाए रखना -यह बात गौरतलब है की  बच्चों के मन में पिता के प्रति  डर का झीना सा पर्दा होना अत्यंत आवश्यक है ताकि वे जब भी कुछ गलत करें उन्हे डर हो कि उनके गलत कार्य पर उन्हें रोकने डांटने और नाराज होने के लिए  पिता है    पिता को चाहिए कि बच्चों के साथ अपनी नज़दीकियांँ बढ़ाए जरूर ,किंतु परिस्थिति एवं आवश्यकता के अनुरूप     सख्ती भी दिखाएं ।बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार बहुत अच्छी बात है किंतु इस बात का भी ध्यान रखें कि उनके मन में आपके प्रति आदर भाव बना रहे। रिश्तो के मध्य गरिमामय वातावरण बना रहे। पिता और बच्चों के मध्य का रिश्ता  पतंग और डोर जैसा है पिता को अपनी डोर इतनी ढीली भी नहीं रखना चाहिए कि पतंग  झूलने लगे और ना ही इतनी सख्त रहना चाहिए की पतंग तन कर कट और गिर जाए ,पतंग और डोर के मध्य संतुलन होना अत्यंत आवश्यक है तभी पतंग आकाश की अनंत ऊंँचाइयों को छू सकेगी।

कीर्ति दुबे


 


Comments

  1. उपयोगी बिंदुओं पर चर्चा की है आपने ... समय के साथ बदलाव लाना आसान नहि पर ज़रूरी है ...

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  2. पिता और बच्चो के बदलते परिवेश में रिश्तों का बहुत ही सूक्ष्मता से वर्णन किया ,अपने लेख में!!आपके लेखनकार्य को सादर प्रणाम!!

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  3. प्रासंगिक

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